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इश्क

कुछ नहीं पड़ता इश्क के पल्ले इश्क होता जज़्बाती है।
घात लगाए दुनिया मुहब्बतों में आज भी शर्तें धराती है।।

जिस ज़ज्बे को खुदा ने नाम इबादत का दिया,
दुनिया उस प्यार को गुनाह व गुनाहगार ठहराती है।

है मुहब्बत जिंदगी का सबसे खूबसूरत तजुरबा,
डंके की चोट पर कहती हूँ तुम्हारी याद सताती है।

सुन कर अल्फ़ाज़ मगर मगरूर न होना,
उलझे – उलझे बाल तुम्हारा भी हाल बताती है।

कहती हूँ ख़्यालों से अपने की चल कहीं और चले,
अंमा इस जहान में आँखे निरंतर अश्क बहाती है।

सुन अन्जाम लैला – मजनू का जवां हो रही पीढ़िया,
बदस्तूर दुनिया आशिक़ों पर, पर आरी चलवाती है।

जमाना अब भी वही है जो पहले था “आभा”
इकरार करने में आज भी सदियाँ बीत जाती है।

बदस्तूर – पहले की तरह से, पूर्ववत्, उसी प्रकार,बिना

आभा….🖋

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