सपना अरोरा। (विधा : कविता) (कागज़ की कश्ती | सम्मान पत्र)
“काग़ज़ की कश्ती”है तो क्या ? सम्भाल कर रखना,हे दोस्तों , यादों का परवाना,तलातुम का सहारा यह काग़ज़ की कश्ती,बचपन का ख़ज़ाना। याद है वो ज़माना पन्ना जो किताब का,खिलोना बरसात का, काग़ज़ की कश्ती,हिसाब था। वो बारिश की बूँदे,मेघों का बरसना छप छप करते,पानी में खेलना काग़ज़ की कश्ती को धकेलना पानी में छप छपाते,पाँव रखना, चंचल था मन, हँसना और हँसाना, कभी न भुलाना,काग़ज़ की कश्ती, बचपन का ख़ज़ाना! धुंधली न करना,वो यादें, गलियों और चोबारों के नाते आकाश में टिम टिमाते तारों से बातें, बरसाती फुहारों के दिन और रातें, बादलों में छिप कर आते, बारिश की बूँदों के मोती, जल की धारा संग, इठलाते और लहराते, काग़ज़ की कश्ती संग, बच्चों की किलकारियाँ, बयाँ कर जाते। कभी ना भुलाना,काग़ज़ की कश्ती,