सोनिया सेठी (विधा : कविता) (चलती रहे ज़िंदगी | प्रशंसा पत्र )
खट्टी मीठी यादों की स्मृति है जिंदगी, कभी अनूठी, अनसुलझी पहेली है जिंदगी। कभी धूप की चाह, पर बरसात है जिंदगी, आस – निरास के
खट्टी मीठी यादों की स्मृति है जिंदगी, कभी अनूठी, अनसुलझी पहेली है जिंदगी। कभी धूप की चाह, पर बरसात है जिंदगी, आस – निरास के
शीर्षक: मंजिल पाने तक तुम भी कुछ कदम चलो, हम भी कुछ कदम चलें, कदम से कदम मिलाकर मंजिल पाने को निकल पड़े बहते चले
चलती रहे जिंदगी रेलगाड़ी सी बेतहाशा रफ़्तार से चल रही, कभी खट्टी तो मीठी यादों में ढल रही, सरपट दौड़ते दृश्य अद्भुत प्यारे, पीछे छूटते
(इस कथा में पात्र का नाम बदल दिया गया है) चलती रहे ज़िन्दगी न रुकना ही ज़िन्दगी है ..और सलाम उस ज़िन्दगी से जूझने वाले
सुख दुःख की पटरी पर जिंदगी की गाड़ी ऐसे ही दौड़ती भागती रहती है कभी उठती, कभी गिरती, कभी लड़खड़ाती बचपन, यौवन, बुढ़ापे के आयामों
चलता हूँ….!! टूटता हूँ , बिखरता हूँ, रोज..! जिंदगी के सलीके सीखने में..!! हर मंजिल पे नया मोड़ मिलता है, जिंदगी के इस सफ़र में..!!
” उलझी-जिंदगी “ जिंदगी के जद्दोजहद के बीच वो उलझी हुई जिंदगी वहीं …., इस चिलचिलाती गर्मी में पेट की आग के खातिर करती है
सुलक्षणा ….जैसे नाम वैसे गुण । अपने पिता की इकलौती सन्तान ,जब उसके लिए उच्च शिक्षित परिवार से रिश्ता आया तो माँ बाप ने उसकी
उड़ने की चाह उड़ने की चाह है तो रुक मत ऐ परिंदे। बाधाएं तो आएंगी पर जीत है तेरे उड़ने में”। कविता का बचपन से
Up the hills and down the roads Sometimes smooth and others with odds The journey from womb to tomb is born And thus life goes
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