अनु साहनी ( भूत बंगला प्रतियोगिता | सम्मान पत्र )
जो खौफ बचपन में भूतों से होता था कभी, देखकर ‘इंसान’को, अब कोई ‘भूत’ डराता नहीं। भूतों का साया,न अब सताता है कभी , पर
जो खौफ बचपन में भूतों से होता था कभी, देखकर ‘इंसान’को, अब कोई ‘भूत’ डराता नहीं। भूतों का साया,न अब सताता है कभी , पर
आज फिर वही अमावस की काली घनी रात बारह बजे वीरान खंडहर से पड़े उस किले के भीतर, अचानक जल उठी है लाइट उभरी इक
याद आता है मुझे एक किस्सा ज़रा पुराना है डरना मत दोस्तों कहानी दिलचस्प सुनाना है भयानक काली रात थी और नानी मेरे साथ थीं
आओ बच्चों तुम्हें सुनायें छोटी सी एक रोचक कहानी जिसको बचपन में सुनाती थी हमको हमारी बूढ़ी वो नानी गली के उस छोर पर था
न भूत हुं,न अतीत हुं। न प्रेत हुं,सिर्फ अभिप्रेत हुं। न छाया हुं,न माया हुं। मैं अपना ही तो काया हुं। क्या डर है? मैं
खोल रे बंधु मन की किवड़िया तनिक रोशनी तो आने दे मैं हूँ अघोरी ह्रीम क्लीम से अंदर का भूत भगाने दे !! जाला बुनता
शीर्षक : भूत परिचय प्रतिनिधि हूँ मैं साम्ब का वीरभद्र शिव ज्ञान का मुझमें भी तत्व तलाशिए जीवन – यज्ञ महान का करो रे संचित
किस्से कहानियों में अक्सर सुनते हैं, वहां मत जाओ, वहां भूत रहते हैं। पर क्या किसी ने देखा है भूत को? या ये महज एक
At the dead end of the lane, There stood a house forlorn, People were tight lipped, About the woman so sweet, Her passion for music
Where’s the end of thirst of light? Darkness suffers in hibernation There’s no possibility of jumping of butterfly declaring deliverance from caterpillar period. Day is
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