एक हद होती है
एक हद होती है, किसी इल्तिज़ा की, हर बार, गिड़गिड़ाया भी, नही जाता। बुत सा चुप रहना, कैसी है सियासत, मन्नत बेअसर, अब कोई नही
एक हद होती है, किसी इल्तिज़ा की, हर बार, गिड़गिड़ाया भी, नही जाता। बुत सा चुप रहना, कैसी है सियासत, मन्नत बेअसर, अब कोई नही
उन गालियों मे एक शाम मेरा जाना हुआ ! थी वंहा भीड़ भाड़ ,था बहुत कोलाहाल ! मे वंहा ठहर गई ,फिर एक जगह नजर
मेरी ये कविता समर्पित है बाल श्रम को, और सब कुछ देख कर भी ना देखने की हमारी उदासीनता को। 🔅उस गली में 🔅 उस
छोड़ आए उस गली के सीने में दफन वो नादान बचपन वो अल्लडपन। छोड़ आए उस गली की रगों में वो मासूमियत हमारी कट्टी अपा
खास लगाव है मेरा उस गली से, ना ना, तुम नहीं समझ सकते। वो जो सड़क का आखिरी मकान देख रहे हो, घर था कभी
‘उस गली में’ ‘उस गली में’ देखो अपराह्न अफ्रा तफरी है, कहीं पक्के मकान तो कहीं टप्री है; जगमगाती बत्तियों से रात उजागर है, चल
ईश्वर ने पृथ्वी को ना तोड़ा था,बल्कि खुल्लम खुल्ला छोड़ा। उसी में हम जंजीर डाले, गलियां ,उपगलियां बना के जोड़ा। रास्ते को भी भटकने पर
The innocent childhood weaved memories, From spools of laughter and craziness. I remember holding hands together, Building sand castles on that street. Exchanging glances, hiding
The very mention of that street fils my heart with mixed feelings of unbounded joy & unforgettable woes. I feel so nostalgic and I am
UBI stands for United By Ink®️. UBI is a Global Platform- the real-time social media interactive forum created for Readers, Writers and Facilitators alike.This platform aims to help creative souls realize their writing goals.
Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com