सोने की लंका जय करके, फिर और किसी को सौंप दिया।
हे राम कहाँ पाया साहस, इतना पाकर सब खो देना।।
औरों से सबकुछ छीन छपट, जिनकी न कभी झोली भरती।
हे राम भरत सी सद्बुद्धि, औ त्याग लखन सा दे देना।।
पी पी कर खाली किए समंदर, मानो ऊंट मरुस्थल के।
पानी ही नहीं औरों के भाग की, तृष्णा उनकी मिटा देना।।
अब कहाँ अहिल्या शबरी हैं, जो आवन की तेरी बाट तकें!
महिला ही मही को हिला रही, भूकंप से धरणी बचा देना!!
था रावण वो बड़ भागी बड़ा, जो जतन मुक्ति हित कर पाया
अब तो सीता तृण ओट नहीं, तुम स्वंय राम तक कर देना।।
इस नये साल में साल मेरे, उपर लिखी अरज ही सुन लेना
हे वर्ष 2020 अहो तुम, पिछला वर्ष ना दोहराना।।
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