बड़ी अम्मा❤️
नेहरू सभागार, नई दिल्ली
“तो इस साल का यंग एचीवर अवार्ड जाता है मध्यप्रदेश के छोटे से क़स्बे छतरपुर की हर्षिता शर्मा को जिन्होंने छोटी सी उम्र में अपनी संस्था बना आज की युवा पीढ़ी के सामने एक मिसाल कायम कर दी हैं।तो स्वागत कीजिये सुश्री हर्षिता शर्मा का…..
मंच पर ट्रॉफी लेने के बाद…
“आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूं जो मुझे इस सम्मान के काबिल समझा।मेरी संस्था ‘बड़ी अम्मा’ का पूरा श्रेय जाता है मेरी दादी को। आप सभी ने अपने बचपन में दादी या नानी से कहानियां सुनी होगी….पर आज मैं आपको अपनी दादी की कहानी सुनाती हूं।
बचपन से मैं एक संयुक्त परिवार का हिस्सा रही हूं। मेरी दादी के रहते कोई भी…इंसान या जानवर हमारे दरवाज़े से खाली न लौटता ।उनके हाथ हमेशा देने के लिये ही उठते। अक्सर माँ, चाची बड़ा झुंझुलाती पर दादी किसी की न सुनती।
दसवीं में थी जब मैंने उनका वोटर कार्ड देखा और चौंक गयी।उनका नाम ‘बड़ी अम्मा’ अंकित था।मैं भागकर उनके पास गई और उनसे उनका नाम पूछा..तो बड़ी सरलता से वे बोली
‘नाम….वो तो कभी था ही नहीं…जब पैदा हुई तो सब रम्मू की मॉडी( बेटी) कहते…जब ब्याह कर यह आयी तो रज्जू की दुलेन(दुल्हन) कह बुलाई गई….जब तेरे पापा पैदा हुए तब सब पप्पू की अम्मा कहते…तो नाम की कभी जरूरत ही नहीं हुई।
मैं अचंभित थी…पर दादी कैसे कोई बिना नाम के जी सकता है…आपने अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी बिना नाम के कैसे गुज़ार दी?
वे बोली ..अच्छा सुन..तेरे पापा का नाम है ना…तो बता कितने लोग उसे जानते है…और मेरा कोई नाम नहीं फिर भी पूरा गांव जानता है मुझे..। हरषु बिटिया इंसान अपने कर्मो से अपनी पहचान बनाता है…ईश्वर ने हमे सिर्फ पैसे और नाम कमाने नहीं भेजा है…अच्छे काम करने वाले किसी नाम के मोहताज नही…समझी मेरी लाड़ो।
बस मेरी दादी से जुड़े इस किस्से ने मेरा जीने का नज़रिया ही बदल दिया…..जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ अपनी दादी से सीखा….अपनी बड़ी अम्मा से।“
आंखों में खुशी के आंसू…चेहरे पे आत्मविश्वास की चमक के साथ वह चल दी…अभी तो शुरुआत हुई है…।।
©श्वेता प्रकाश कुकरेजा
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