जैसे कल की सी बात है,
जब तुम शान से आए।
मेरी आंखों में अनगिनत
सुखद से सपने सजाए।
कितने अच्छे रहे तुम,
जैसे पल भर में बीते।
तुम्हारे रहते दिन मेरे,
कितने सुखद से बीते।
रोज़ सवेरे मुझको तूने,
स्नेहिल स्पर्श से जगाया।
ऐसा सौभाग्य सभी को,
कदापि नहीं मिल पाया।
अाई सामने जब चुनौती,
हौसला भी तूने बढ़ाया।
हर हार को रह संतुलित,
पचाना खूब सिखलाया।
रख दूर सदा कुसंगत से,
नशेड़ी बनने से बचाया।
घर फूंककर तमाशा देखूं,
बखत ऐसा ना दिखाया।
हुआ आरंभ नाट्य प्रशिक्षण
अवसर अभिनय के दिलवाए।
लेखन, अभिनय क्षेत्र के कई,
संभावित आयाम दिखलाए।
घूमता फिरा मुंबई में सदा,
धक्के भीड़ के खूब खाए।
मझे बचा हर अनहोनी से,
सुरक्षा के गुर सिखलाए।
सत्याग्रह सारे शरीर के,
सुख से स्वीकार करवाए।
कर आदर हर विकार का,
उपाय समुचित सुझाए।
पड़ा जो पाला कभी दुर्जन से,
सुझा युक्ति पंगों से बचाया। अचानक एक ज्येष्ठ मित्र को,
जीवन अंश अद्भुत बनाया।
छीन छत्र मातृत्व का सर से,
स्वाद आंसुओं का चखाया।
आभासी विश्व के मित्रों संग,
संगम अति मधुरम रचाया।
जो भी कुछ रहा ठीक ठाक,
सब तेरी ही कृपा की छाया है।
हृदय कहे “धन्यवाद २०१९”
निज सोच को जब दौड़ाया है।
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