हिंदी लेख
अंधेरा
अंधेरा!! जिसे मैंने कभी गौर से नहीं देखा! याने ऐसा अंधेरा जिसमें खुद अपना हाथ तक ना दिखाई दे!वकहीं पढ़ा था कि अंधेरे का अपना अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश का सर्वथा अभाव ही अंधेरा है। मन हुआ कि क्यों ना अंधेरे पर कुछ लिखने से पहले विशुद्ध अंधेरे को ठीक से देख लूं! अनुभव लूं उस स्थिति का जब कुछ भी दिखाई ना दे! ताकि उस अनुभव शब्दांकन कर सकूं!
कमरे की सारी खिड़की दरवाजे पर्दे बंद की, फिर सब कुछ दिखाई पड़ रहा था! आधी रात भी कोशिश
की पर जो पाया उस अंधेरे में रोशनी की मिलावट थी!
अब मैं याद करने की कोशिश करने लगा कि ऐसा अंधेरा कहां और कब देखा था मैंने? जब भरी दोपहर को किसी सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने के बाद पहुंचता हूं तो कुछ समय ऐसा ही अनुभव अनुभव मिलता है। पर्दे पर चल रहे दृश्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई देता खुद अपना हाथ भी! धीरे धीरे जब आंखें अभ्यस्त हो जाती हैं तो सब कुछ ठीक से दिखने लगता है!
बचपन के दिनों में जब सन१९६५ और १९७१ में भारत पाक युद्ध हुआ था तब मैं परिवार के साथ बंबई (जो आज मुंबई के नाम से जाना जाता है) में रहा करता था। तब के ब्लैकआउट की रातों का स्मरण हो आया! तब भी कहां मिला था ऐसा अंधेरा?
फिर ख्याल आया कि यदि किसी भी क्षण आंखें मूंद लूं तो अंधेरा ही अंधेरा होगा! मैंने झट आंखें मूंद कर बिस्तर पर लेट गया! पर अंधेरा वहां भी ना मिला! वहां भी मेरी मन की आंखें खुली थीं और देख रह मन में चलते विचारों, कल्पनाओं और यादों को! एक क्षण के लिए भी कुछ ना देख पाना जैसे असंभव था! मानस पटल पर अतीत की यादों, विचारों और कल्पनाओं का तांता लगा हुआ था… फिर धीरे धीरे यादों और विचारों की जगह अजीबोगरीब दृश्यों की श्रृंखला ने ले ली… इस के बाद जब आंख खुली तो दिन उग गया था! इस बीच नींद आ गई। पर मेरा एक अंश देख रहा था मेरा सो जाना! तभी तो वह जानता था कि मैं सो अवश्य गया पर शुद्ध अंधेरे से मिल नहीं पाया!!
सच अंधेरा भी कितना दुर्लभ हो चला है आज कल? ना जाने कैसे और कब और कहां मिलेगा? मैं कैसे लिखूं अपनी कविता??
~श्याम सुंदर शर्मा
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