छम-छम, ढम-ढम
हरपल हरदम
गूंजती है सरगम
यादें बन्द क्षण।
बचपन युँ बीते
किलकारियाँ व चीखें
भरके गुँज तीखे
कुदते व उछलते।
मस्त अल्हड़ योवन
चंचल, अकिञ्चन
बिंदास हरदम
गूजरे वह क्षण।
हंसी दिन, हँसी रातें
ख्वाबोँमे थपथपाते
गुफ़्तगू से गुदगुदाते
कनखियोसे बुलाते।
खढे आज यहां पे
ढूंढते हैं लुप्त जहाँ पे
छूट गये जो वहांपे
फिर मिले यहांपे ।
यादोंके उस गलीमे
फिर सजके खयालोंमे
अलग गुमसुम बैठके
लगता है खूदको ढुंढे ।
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.