धरती माँ ।
शिबराज प्रधान।
दर्पण पे लिखावट के शर्तोंमे सँवरके
सुरम्यताके मोहिनी तर्जौंमे थिरकके
चपल लहरों के जूदा रीत मे बँधके
तेरे असीमित अंकमालमे लिपटके
धरती माँ , तुझे नमन लिखूं ।
प्रक्रिति के अवर्णनीय सौन्दर्यता
छलकाता है मोहिनी स्वार्गिक छटा
मौसम रंगता है सजीला मोहकता
तेरे वक्षपे है जादुगरीकी की सज्जा।
कहीं हरी भरी लुभावनी सघनता
कहीं बञ्जर भूमिके आत्मिक ब्यथा
कहीं बारिश के रमझम बाहुल्यता
कहीं सूलगते धूपकी तप्त उष्णता।
दिनमे सूरज की प्रज्वलता अहम
रात मे चाँद तारों की अलंकरण
कभी मन्द मन्द हवाओं की छमछम
कभी झंझावतके झोंका बडे बेरहम।
तेरे गर्भमे रहस्योंकी अथाह भण्डार है
तेरे असीम प्यार मे ईश बरदान है
तेरे महान शब्दों मे जीवन के शान है
तेरे भाल पे सिर्जक का सरताज है।
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One Comment on “शिबराज प्रधान (UBI धरती माँ प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र (कविता ))”
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