तमस हुआ दूर रोशनी से जगमगाया हर शहर
चारों तरफ फैल चली उजालों की लहर
चैत्र बैसाख में मीठे लड्डू फूटे तिल के
रंग बिरंगी पतंग लड़ाए पेंच और दिल मिल जायें दिल से
सूर्य चढ़ता उत्तरायण जब मनाते दक्षिण में पोंगल
भांगड़ा पाते शावा शावा आखाड़ों में होते दंगल
राखी में जब बंधती रेशम की ड़ोर कलाई पर
प्यार और भी चमक जाता हर बहन और भाई पर
बसंत पंचमी ले कर आती हर फूल में बहार
रंग फेंकते गले मिलते जब आता होली का त्योहार
ईद में सेवंई खाकर देख चाँद लजाती वो
करवा चौथ में उसी चाँद की कसमें दे प्यार जताती वो
बप्पा आते मूषक पर फिर होता लड्डू सेवन
दशहरा में सच्चाई जलाती बुराई का रावण
दीपक प्रज्जवलित करते दीपावली की शाम को
भक्त मनाते हर्शोल्लास से अयोध्या लौटे राम को
सर्द ठन्ड में बर्फीली जयकार होती हर्ष की
क्रिसमस करता घोषणा आते नूतन वर्ष की
पूरे वर्ष मनाते उत्सव कटता जीवन का यह सफर
चारों तरफ फैल चली उजाले की लहर
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