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रीता बधवार ( जलती वसुंधरा प्रतियोगिता | सम्मान पत्र आलेख )

‘जलती वसुंधरा’ के इस भयावह दृश्य को देखकर
अनायास ही’घर फूँक तमाशा देखने’ की याद आ जाती है
आज चारों अोर हाहाकार मचा हुआ है।सभी प्राणी,जीव-जंतु धरती के लगातार बढ़ते हुए तापमान से त्रस्त हैं। क्या पशु क्या पक्षी,यहाँ तक कि संपूर्ण साधन संपन्न मानव भी इस बढ़ती हुई गर्मी को लेकर चिंतित हैं ।
केवल हमारा देश ही नहीं वरन् इस धरा पर जितने भी दूर दराज़ क्षेत्रों की हम कल्पना कर सकते हैं- सभी इस महामारी से पीड़ित हैं।
सभी विकसित एवं विकासशील
देशों के बुद्धिजीवी,साधारण नागरिक, सामाजिक संस्थायें एवं सरकारें अपने-२ तरीको़ं से तथा समय-२ पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों की सहायता से इस’ग्लोबल वार्मिंग’ पर रोक लगाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।
हम आये दिन समाचार पत्रों में पढ़ते व रेडियो व टेलिविज़न पर ख़बरों में देखते व सुनते रहते हैं कि अचानक अचानक अमेज़न के हरे भरे जंगलों में आग लग गयी।कभी हिमालय घाटी के हरे-भरे जंगल धू-धू करके धधक उठते हैं ।
आखिर इसका कारण क्या है ?धरा की ऊपरी सतह व अंर्तमन दोनों ही बेइंतहा गर्मी से बेहाल हैं ।कारण समय पर वर्षा का न होना,अपर्याप्त वर्षा, अतिवृष्टि और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है।
इससे बचने के लिये हमें
अधिक से अधिक पौधारोपण करना होगा,अधिक से अधिक वृक्ष लगाने पड़ेंगे, जंगल बचाने होंगे ।
तब समय पर होने वाली वर्षा से हमारी तृषित धरती की प्यास बुझेगी ।वह हरी-भरी,शस्य-श्यामला बनेगी ।
इस प्रकार इस ‘जलती वसुंधरा’ की आत्मा की आग बुझेगी और वह शांत हो स्नेहिल
ममतामयी माँ जैसा स्नेह हम पर लुटायेगी ।

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