ए सावन तू क्यों आता है मेरे मायके की यादें साथ लाता है
याद आता है वो जतन जिससे मैं कपड़े लगाती थी
ये यहाँ पहनूँगी ये वहाँ पहनूँगी सोच कर रखती जाती थी
“सुबह से दरवाज़े पर खड़ी है तेरी माँ “ताई का मीठा उलाहना याद आता है
ए सावन…
दौड़ दौड़ कर बाज़ार जाती भाई के लिए उपहार लाती
“भाभी को धानी चूड़ी पसंद है” कह इनसे पैसे निकलवाती
मेरी नन्ही बिटिया को देख दादी की झुर्रियों का मुस्कुराना याद आता है
ए सावन….
“बिटिया साल में एक बार ही तो घर रहती हो” कहते पापा की आवाज़ भर्राती
दामाद जी के लेने आने पर माँ पास पड़ोस में बुल्लवा लगवाती
बुआ मौसी सखियों का मिलने के बहाने घर आना याद आता है
ए सावन..
अब ना रही दादी ना माँ ना ही पापा भाई भी गया विदेश
“यहाँ कब आओगी दीदी “भाई हर सावन भेजता है संदेस
पर विदेश में कहाँ सावन ये पुकारता सावन तो अपने घर में ही भाता है
ए सावन तू क्यों आता है मेरे मायके की यादें साथ लाता है
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