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मन की आवाज़

वर्षों से बहुत कुछ दबा छुपा इस मन में
आने को आतुर बाहर इस जीवन में
उसको चुपचाप यूँ ही सुप्त पड़ा रहने दो
मन का आवेग बाँध थोड़ा तुम
स्नेह-धारा अविरल बहने दो

खरे सोने सा तपा मेरा मन
आकुल है प्रतिपल कुछ-२ कहने को
नि:श्शाँत पड़ा रहने दो उसको
जीवन-धारा निर्झर निर्भय बहने दो

पूरी शक्ति पूरी ताक़त से तुम चलते ही रहना
जीवन में हरदम आगे ही आगे बढ़ते रहना
यही मूल मंत्र है जीवन का
नहीं अर्थ है कुछ भी खोने या पाने का

@reetatandonbadhwar

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मन रे तू काहे न धीर धरे ा

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