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भावना शर्मा। (विधा : लघुकथा) (कागज़ की कश्ती | सम्मान पत्र)

बादल घुमड़ घुमड़ कर बरस रहे हैं।अवनि खिड़की की सींखचों से बाहर झांक रही है।उसे याद आ रहा है कैसे वह अपनी माँ के साथ कागज की नाव बना कर चलाया करती थी।बारिश और नाव उसकी सबसे सुन्दर यादें थी।अब उसकी माँ नहीं हैं,सब कहते हैं वह भगवान के पास चली गयी है और जो नयी माँ आयी है ,दादी कहती है वह उसकी माँ नहीं है।वो सिर्फ आदि की माँ है।जब पड़ोस की परि दीदी मिलती है तो उसे यही कहती है आदि और नयी माँ से दूर ही रहना,ये कभी अच्छे नहीं हो सकते।सोच सोच कर अवनि और रुआंसी हो गयी।इतने में उसने देखा आदि कागज की नाव बनाकर बाहर जा रहा है तो वो भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गयी।आदि मनोयोग से नाव पानी मेंछोड़ कर खिलखिला उठा।नाव पानी में जाते ही जरा हिचकोले खाकर लहराकर आगे बढ़ने लगी।उसे बहता देख आदि नाच उठा और अवनि के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी।अचानक आदि घबरा उठा ,आगे ऊपर की नाली का पानी गिर रहा है।नाव डूब जाएगी ,ये देख अवनि जल्दी से पानी में कूद गयी।कमर तक भरे पानी में चलते हुए उसने नाव उठा ली।ये देखकर आदि  खुशी से चिल्ला उठा ‘वाह दीदी”वाह दीदी’सुन अवनि मुस्कुरा उठी।वह झूम कर आगे बढ़ी ही थी कि उसका पैर किसी चीज से टकरा गया।वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि दो मजबूत हाथों ने उसे पकड़ कर उठा लिया।डर से उसकी आँखें बन्द हो गयी,पर जिसने उसे पकड़ा उसने उसे अपने गले से लगा लिया था और अवनि ने महसूस किया कि उसे माँ की महक आ रही है।उसने कागज की नाव को प्यार से खुद से चिपका लिया।

भावना शर्मा©️

स्वरचित

मैं घोषणा करती हूँ कि यह रचना मौलिक एवं स्वरचित है।मुझे इसे UBI page पर प्रकाशित करने में कोई आपत्ति नहीं है।

भावना शर्मा

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