जीवन …..व्यर्थ न गँवाओ
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नहीं लौटकर फिर आने वाला ..बीत गया जो कल
न जानें क्या ले आए संग अपने …आने वाला कल
किसी बड़ी ख़ुशी के इंतज़ार में ..न खोना ये पल ।
जीवन बहुत ख़ूबसूरत है देखो व्यर्थ इसे न गँवाओ।
आज के परिवेश में ख़ुश भी होना कितना दुष्कर है
उन्मुक्त गगन में विचरने को मन का पंछी आतुर है
मृगतृष्णा सा भ्रमित मन निज सपनों से क्यों दूर है ।
जीवन की सार्थकता को समझो व्यर्थ इसे न गँवाओ ।
मन में फैले अंधकार में आशा की किरण जागृत कर
ह्रदय पट खोल तू , ख़ुशियों के दीप से प्रज्वलित कर
तोड़ निराशाओं के बंधन,नव चेतना मन संचारित कर।
जीवन को प्रकाशस्तंभ बनाओ ,व्यर्थ इसे न गँवाओ ।
महल दो महल ही नहीं जीवन में ..ख़ुशियों का साधन
क्षणभंगुर ये जीवन है और क्षणिक जीवन के प्रलोभन
रात ढले जैसे ओझल हो जाए पात पात से तुहिन कण।
जीवन छोटी ख़ुशियों से भरी पड़ी हैं ,व्यर्थ इसे न गँवाओ।
फूल-पात,खगवृंद,नदी-नाले,पहाड़ों से है जीवन संतुलित
प्रकृति का कण -कण करती जीवन का आनंद परिभाषित
नव ऊर्जा भर देह प्राण में ,मन में कर नित नये उद्गार संचित
जीवन का हर पल अमोल, इसे न अहंकार में व्यर्थ गँवाओ।
जीवन- आनंद लो शिशु की सीप सी उजली मुस्कान में
स्वस्थ जीवन,स्वस्थ तन मन ,ईश्वर से माँगो वरदान में
निश्चल प्रेम की अनंत धारा बन बहना हर उर पाषाण में
जीवन है चलने का नाम,रुक कर तुम व्यर्थ इसे न गँवाओ ।
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित(C) भार्गवी रविन्द्र…
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