प्रकृति-गीत
वीरान जंगल, नाचते मयूर,
कल कल बहते झरनें,
महकते गुलाब और जूही,
गाती कोयल और बटेर,
क्या कहते है हमसे?
क्या कोई पैगाम सुनाते हैं?
क्या कभी उनके मधुर स्वर के,
मर्म को समझना चाहा है?
प्रकृति का हर शय,
हमसे कुछ कहता है।
कोई पैग़ाम तो अवश्य देता है ।
मैंने उन्हें जाना है,
और समझा भी है।
दुनिया के शोर से दूर,
एक रोज़ हौले से,
मेरे कानों में,
वे कुछ बुदबुदाने लगे,
और कहने लगे-
अरे तुम…..?
.. तुम तो, बिलकुल हमारे जैसी हो,
तुम भी ऐसा ही तो गाती हो,
उन टहनियों की तरह ही तो झूमती हो,
उस झरने.की तरह ही तो बहती हो,
जूही की तरह ही तो महकती हो।
क्या भेद रहा फिर हम में और तुम में?
क्या फर्क ज़माना बतलाता है?
व्यर्थ ही उलझनों में उलझाता है!
हमसे ही तो तुम हो।
तुम से ही तो हम है।
फिर क्यों हम-तुम जुदा हो?
क्यों ना संग में,
हवाओं का स्पर्श करें,
आसमां को छुएं,
सूरज की रोशनी में नहाएं,
और लहरों में लहराएं।
कुछ बंदिशें तुम तोडो़,
कुछ बंदिशें हम तोड़े,
आखिर चलना तो संग ही है।
कुछ ऐसे हमसफ़र बनें कि
कदम तुम्हारे हो,
चाल हमारी हो।
जिस्म तुम्हारा हो,
महक हमारी हो।
लफ़्ज़ तुम्हारे हो,
आवाज़ हमारी हो।
हाथ तुम्हारे हो,
रचना हमारी हो।
रास्ते भले जुदा हो,
मंज़िलें एक हो।
तभी तो सृजन होगा।
आनंद और उत्साह होगा।
हर क्षण उत्सव होगा।
और जीवन एक ख़ुशनुमा सफ़र होगा।
एक खु़शनुमा सफ़र होगा।
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5 Comments on “प्रकृति गीत”
वेरी नाइस बेटा मुझे मेरी बेटी पर बहुत-बहुत प्राउड है बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति की है प्राकृतिक सौंदर्य का नैनो को सुकून देने वाला दिल को शांति देने वाले शब्दों की माला को जूही में सुंदरता बढ़ा दी है
Beauty lines .
Beautiful lines…
Beautiful dear
Very nice dear 👌