“एक डाॅक्टर की शपथ “
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हो चाहे विनाशकारी वैश्विक महामारी ।
या कोई हल्की-फुल्की बिमारी ।।
कर्तव्य विमुख ना करे मुझे गरीब की लाचारी ।
मेरे लिए हैं समान अमीर- गरीब, नर-नारी ।।
चुना है हमनेे मानव सेवा का पथ। लिया है हमने ‘एक डाॅक्टर की शपथ ‘।।
उद्देश्य है मानव जीवन बचाना।
ना कि खुद ही ईश्वर बन जाना।।
ना भूलूँ , मैं केवल रोग निदान करता ।
ईश्वर है, जो जीवन वरदान देता।।
चुना है हमने ……
व्यक्तिगत इच्छा व पारिवारिक दायित्व से आगे ।
मजबूत करते डाॅक्टर व रोगी के सम्बन्धों के धागे।।
मिला दुर्व्यवहार तो भी बढें कर्तव्य पथ पर आगे ।
रोग मुक्त हो जीवन यही दुआ हमेशा माँगें ।।
चुना है हमने……..
यह मेरी मूल,अप्रकाशित ,व स्वरचित रचना है ।
दिनेश चन्द्रा
वाराणसी
उत्तर प्रदेश
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