खुद को बलिहारी करके
धीर-धीरे नज़रों को उठा तुम्हें देखा है।
अपनी हस्ती को नगण्य मान
समस्त स्वरूपी तुम्हें देखा है।
है धीमी अपनी चाल किन्तु
कदमों की लहराहट में तुम्हें देखा है।
है ठंड तो बाहर बहुत
श्वांस की गर्मी में किन्तु तुम्हें देखा है।
गर्म कम्बल को ओढ़ा है
परन्तु रिसती हवा में तुम्हें देखा है।
मूँदी है आँखे कुछ पल के लिए
जीवन भरे वातावरण में तुम्हें देखा है।
ऊँचे वृक्ष से लिपटी हुई
छोटी-छोटी बेल-लताओं में तुम्हें देखा है।
बिजली की सरकारी संचार-प्रणाली के इतर
ऊर्जा-संचार लेते पंख वाले जीवों में तुम्हें देखा है।
घने दरखतों से छन-छन कर आती
कुछ पीली, कुछ नारंगी ताज़गी में तुम्हें देखा है।
विद्या-केन्द्र में पैदल चलते
श्वेत पक्षियों के कलरव-एका में तुम्हें देखा है।
जीवन के हर कण में हर कोंण में
नीले आसमान परे ऐ खुदा तुम्हें देखा है।
हो बन आई जीवन संगनी तुम मेरे जीवन में
खुद में और अपने खुदा में तुम्हें देखा है।।
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