जन्म ही उत्सव है, मौत है उत्सव उस से भी कहीं ज्यादा।
परमात्मा के साथ मिलन की है जो इरादा।
जन्म से ही जीन्देगी घिस जाती है यहीं।
पता न चले कि समय खिसक जाता है यूंही।
ढुंढने पर भी मिलता नहीं है कहीं।
हर पल को कैसे जीन्देगी बना दिया जाएं,
हर पल को कैसे खुशी से भर दिया जाए,
इसी खोज से पुर्वोजों ने उत्सव बनाएं।
उत्सव में कैसे जीन्देगी भर दिया जाएं,
इसी उम्मीदों से चलो सब हम उत्सव मनाएं।
हर पल से कैसे खुशियां लुटा जाए,
इसी वहाने चलो हम सब उत्सव मनाएं।
मिलेंगे गले हर किसकी,हो न हो अगर कोई मित्र।
खुशियां बिखर दें,जैसे फैलता है कोई खुशबू, खुशनुमा इत्र।
पटाखें फोड़ना कोई आम बात तो नहीं,
दूर दूर तक फैलेगा शब्दों से,जैसे अपनी भाई चारा है सही सगी कोई।
रोशनी से रौशन हो मन की अंधियारा।
मिठाई से मिटे जुवानो की कटुता,तितापन सारा।
हर पल बनें सुखद , हर्षोल्लास से बनें असाधारण।
निखरें धरती मां की सौंदर्य,बदले साज, भव्य शृंगार करें धारण।
दिपावली जो आ रही है अगली त्योहार।
ज्ञान की रोशनी से नाश हो अज्ञान की तमस अंधकार।
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