अक्षय
आज भी,फिर बरसों बाद,
अक्षय है प्यार, साथ तेरा -मेरा,
मुरझाया नहीं है, बीसों बरसों बाद।
नौंक-झौंक,चमकीली,
तपती दुपहरी की, रही हैं बहुत।
जो ढलता, कड़ुवाहट भी,
कभी दिनों का दे गई।
बीच इस सब, दामन प्रेम-प्रसंग का,
अधिकाया है, बीसों बरस बाद।
विश्वास जो, पहली नजर में बना,
उसको, झंझावातों ने, कई बार आजमाया है।
धरातल जीजीविषा का,
अदृश्य सा होता प्रतीत, प्रीति लगती कल की सी,
चट्टान पे खड़ी है, बीसों बरस बाद ।
यूँ तो हरदिन का पैनापन, अपनी काट को,
कम नहीं करता, मजबूत इरादों से,
हमने चुनौतियों को रोज की,
कह कहकर फिर बुलाया है, बीसियों बरसों बाद।
रिश्ता पौधे सा, हर दिन केवल
देखरेख दुलार, में पलता।
नयी नयी कोमल, कोंपलें, पन्ने सी उगलता,
खेलता, धूप से, बयार से, फिर लुटाता फूल,
देता छाँव, ‘ना’ नहीं करता, बीसों बरस बाद ।
डॉ. रामा तक्षक
नीदरलैंड्स
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