शीर्षक – सच हुए सपने सुहाने
एक बगिया की मासूम कली
दूसरे उपवन में महकने चली I
यहाँ भी ख़ुशियों की बहार लाई
वहाँ भी ख़ुशियों का कारवाँ ले के चली I
अपनों से जुदा हो कर नए रिश्तों को
माला में संजोकर पिरोने चली II
साजन के नाम का माँग में सिंदूर लगाए
लाल जोड़े में नई नवेली दुल्हन सजी I
उल्फ़त की मंज़िल पे ख़ुशी ख़ुशी
नए हमसफ़र के साथ निकल पड़ी I
सात फेरों के बंधन में बंध कर
आज नई दहलीज़ पर है खड़ी I
सुनहरे सपने आँखों मे सजाए
दो घरों के संस्कार निभाने चली I
कुछ दिल में अरमान बसाए
नए रिश्तों को अपनाने चली I
हज़ारों तमन्नाएँ और सपने दिल में संजोए
साजन के साथ उसके द्वारे पे खड़ी I
सास में माँ की झलक की कामना कर के
ममता के आँचल में सिमटने की चाह करी I
ससुर से पिता सा लाड़ दुलार पाकर
स्नेह की बारिश में भिगने की इच्छा करी I
अपनापन मिलने का अरमां लिए हुए
नए रिश्तों के बीच में घिरी खड़ी I
बहू की जगह बेटी का दर्ज़ा पाने की
अभिलाषा रोज़ खवाबों में करी I
ससुराल का अभिन्न हिस्सा बनने की ख़्वाहिश
हर दिन सपने में उस के पली II
सपनों की दुनिया हक़ीक़त में
कुछ ही पल में बदलने लगी I
चूम कर माथा सासु माँ ने जब ये बात कही
“आओ बेटी अपने घर में प्रवेश कर के
इस घर को अपना समझकर रोशन करो II
डा॰ अपर्णा प्रधान
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2 Comments on “डा. अपर्णा प्रधान। (विधा :कविता) (एक दुल्हन के सपने| सम्मान पत्र)”
Very good poem.. congratulations
Thanks Vinita