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डाॅ. सोनिया गुप्ता। (विधा :कविता) (एक पैगाम पिता के नाम | प्रशंसा पत्र)

हमारा हाथ पकड़े वो, हमें चलना सिखाता है
भुलाकर गम सभी अपने, हमें हर पल हँसाता है |

मिले है नाम उससे ही, मिले पहचान उससे ही
जगत के रूप से अवगत, पिता ही तो कराता है |

दिखावा वो करे हर पल, लगाए डांट जब हमको
भला चाहे हमारा वो, तभी बन सख्त जाता है |

करें हम ख्वाहिशें कोई, सभी पूरी पिता करता
पसीना वो बहा खुद का, हमें हर सुख दिलाता है |

किसी भी हाल में हम पर नहीं वो आंच आने दे
तुफ़ानी मुश्किलों से वो हमें हर पल बचाता है |

हमीं में खोजता जीवन, हमीं से आशियाँ उसका
हमीं को नैन में भर कर, नये सपने सजाता है |

सभी गुनगान करते हैं, जगत में सिर्फ माता का
पिता करता समर्पण जो, नहीं क्यूं याद आता है |

नहीं कोई समझ सकता, पिता का मोल क्या जग में
वही जाने इसे शायद , पिता जब दूर जाता है |

कभी सोचो जरा कैसे बदलता है जमाना ये
सफ़लता के शिखर पर चढ़, पिता को भूल जाता है |

अरे अब भी समझ लो जिन्दगी में क्या जगह इसकी
वही है भाग्यशाली जो, पिता का नाम पाता है |

पिता है ईश से बढ़कर, दुखाना तुम न दिल उसका
पिता जीवन तुम्हारा है, पिता ही तो विधाता है |

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डाॅ सोनिया/

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