सिसकते ह्रदय की पीङा को
ज़ाहिर होने देती नहीं
माँ सी होती हैं आखे
सहकर कूछ कहती नहीं
सहकर दर्द सदियों का
आंखो में आंसू रिसते रहें हैं
बनकर सदभाव मन मन में
पलकों के पीछे बसते रहे हैं
कहते है लोग बह जाने दो
इन आंसूओ को
माटी मोल लूट जाने दो
मोती सी भावनाओं को
तब दुख से सराबोर हो कर
टूट जातीं हैं आंसू की लड़ी
पर जौहरी सी परखती
अनमने से त्यागती, रोकती
यह बेबस भीगी पलकें
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