कल रात चाँद खुद खिड़की में आकर कुछ यूँ मुस्कुराया,
उसे देख मेरा महबूब भी था शर्माया,
बस उसकी इसी अदा पर हम फिर एक बार मर मिटे,
आज फिर उस पर मुझे पहले सा प्यार आया ❤️
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2 Comments on “चाँद”
बढ़ी दुविधा हो जाती है
जब चांद भी हो
और मेहबूब भी पास
एक मुस्कुराए
दूजा शरमाये
किससे ,कैसा, कितना
साथ निभाएं
कि दोनों ही
खुश हो जाये
Bahut khubsurat likha