बरबस खिंचा जाए मन, पहन प्रेम का चोला।
एक हृदय मन चुम्बक है, एक हृदय मन लोहा।।
आँखे देख न पाएँ, मन, पंख लगा उड़ जाएँ।
नख-शिख,अंग-अंग, संग, मृदंग मधुर गीत गाएँ।।
एक-दुजे को पढ़ते, जैसे, बाँचे सूरदास कृष्ण रोला।
बरबस खिंचा जाए मन, पहन प्रेम का चोला।
एक हृदय मन चुम्बक है, एक हृदय मन लोहा।।
मानस पटल पर बीते दृश्य, जब सजीव हो जावे।
नीर- गलावे, धूप- तपावे, दो-घड़ी चैन न आवे।।
आठों पहर हृदय में प्रित, प्रित का जलावे शोला।
बरबस खिंचा जाए मन, पहन प्रेम का चोला।
एक हृदय मन चुम्बक है, एक हृदय मन लोहा।।
समझ न पाए मृग कभी, तन से महक आवे।
‘पी-कहाँ’ ‘पी-कहाँ’ पपीहा काहे रट लगावे।।
हृदय-अधीर, उलझे-केश, उद्विन हो मन बोला।
बरबस खिंचा जाए मन, पहन प्रेम का चोला।
एक हृदय मन चुम्बक है एक हृदय मन लोहा।।
राग – जो रचना मनुष्य के मन को आनंद के रंग से रंग दे वही राग कहलाती है।
रोला – दोहा, एक प्रकार का छंद जिसमें 11 + 13 के विश्राम से 24-24 मात्राओं सहित चार चरण होते हैं।
आभा….
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