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गीत

अश्रु-विगलित रमणी का करुणा से भरा व मार्मिक गीत लिखने का प्रयास। विदा का मार्मिक दृश्य दर्शाता। जब दरवाज़े पर मृत्युदाता का बुलावा आ जाता है। तब वेदना असह्य हो जाती है और रमणी की दिल की गहराई से ये गीत निकलता है।

गीत – ( कौन सा मैं श्रृंगार करूँ )

चीता पर जब पाँव धरूँ।

कौन सा मैं श्रृंगार करूँ ?

काया पिंजड़ सूना हो गया।

उतावला पन, दोगुना हो गया।।

प्रियतम आव प्रतीक्षा में, खुली अपनी पलक धरूँ ?

या लख चौरासी फेरों में, फिर खुद को स्वाह करूँ ?

चीता पर जब पाँव धरूँ।

वियोग भरा श्रृंगार करूँ ।।

चीता पर जब पाँव धरूँ।

कौन सा मैं श्रृंगार करूँ ?

धारण करूँ आभूषण कंचन।

मुरझाया लोचन का अंजन।

नश्वर देह जो मिली माटी, फूँक-फूँक फिर प्राण भरूँ ?

या अंत-समय, रंग-रूप खिला व्यर्थ-प्रेम प्रलाप करूँ ?

काया रथ जब छोड़ चलूँ ।

तब दुल्हन सा श्रृंगार करूँ।।

चीता पर जब पाँव धरूँ।

कौन सा मैं श्रृंगार करूँ ?

दीर्घ जीवन अर्पित किया।

प्रित को समर्पित किया।

भाव न थके, थक गया तन, शुष्क-शुष्क आँसू झरूँ ?

विदाई की अनुमति माँगू, आँखे मूँद अब प्राण तँजू।

अंगारों पे जब मैं उतरूँ।

करुणा का श्रृंगार करूँ ?

आभा….🖋

अश्रु-विगलित – रिसकर निकला, पिघला हुआ ।

रमणी – नारी, औरत।

21/05/2019

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