फिर इक नयी उम्मीद, फिर इक नयी चाहत
फिर इक नया सवेरा
आ चल कर लें ख्वाहिशें पूरी
कि जब तक साथ है तेरा और मेरा
आ चल कि फिर से पकड़े तितलियाँ
आ चल कि फिर से रातों में जुगनूँ निहारें
आ चल कि फिर से मैं देखूँ तुझे यूँहीं
आ चल कि फिर से तू मुझे यूँहीं पुकारे
आ चल कि फिर से चलें उन पगडंडियों पे
जिनकी मंज़िल तेरे और मेरे सिवाय और कोई ना जानें
आ चल कि बुनें फिर से वो सपनें
जो तुने और मैंने चाय की चुस्कियों पर सँवारें
आ चल कि फिर से ढूँढ लें वो लम्हें
जो दुनिया की भीड़ में हम तुम ने गँवाए
आ चल कि गुज़रता नहीं ये वक्त़ तेरे बिना
ये छोटी सी लंबी ज़िदगी …कैसे तुझ बिन गुज़ारें
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3 Comments on “ख्वाहिशें”
वाह, क्या बात। बहुत खूब।
Thank u so much meenakshi ji
बहुत ही अच्छी कविता।।