वैसे तो सभी के साथ है,
जीवन के अनुभवों का प्रवास,
मगर जब जानना हो खुद को,
तो करना चाहिए एकांतवास.
एक ऐसा आइना जिसमें,
मेरा प्रतिबिम्ब पास से दिखता हो,
मैं कहाँ सही और गलत हूँ,
इसका मूल्यांकन होता हो.
क्यों हमेशा समाज से ही जुड़ूँ ,
लोगों की तारीफें और बुराइयां करूँ,
आरोप प्रत्यारोप प्रेम और घृणा से परे,
मेरी खुद की भी तो दुनिया और व्यक्तित्व है.
तो सबसे पहले खुद के लिए समय निकालू,
एकांतवास के आनंद को अपनाकर,
खुद को अच्छे से परखकर,
दुनियाँ में अपने होने का उद्देश्य पहचानू.
तभी मेरे प्रयत्न सही और सार्थक होंगे,
अर्थपूर्ण होगा एकांतवास,
समाज की प्रगति स्वयं से शुरू करके,
अनूठा होगा जीवन का प्रवास.
….रोहन कोठारी
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