न जाने। क्यों वो शख़्स, दिल में समा गया।
जागें वो मेरे ख़्वाबों में, जहन पे छा गया।।
न इकरार न इंनकार, न तकरार न इज़हार।
वस्ल से ज़्यादा मज़ा, जुदाई का आ गया।।
तन्हाई में हर बात की, सामने शरमा गया।
यादों का लम्हा, धड़कन दिल की बढ़ा गया।।
कुछ कहने को बेक़रार दिल, कह नही पाता।
बीन कहे समझे, बोली आँखो की पढा़ गया।।
कुछ रिश्तें अजीब होते है, ख़ामोशी जहाँ बोले।
रूहों का मिलन, जिस्म दो “जान” इक बता गया।।
थोड़ा सा मैं भी बहकी, थोडा़-थोड़ा सा तू भी।
ना छुपा सका बेताबी, समंदर आँखों में आ गया।।
न जाने क्यों वो शख़्स,”आभा” दिल में समा गया।
जागें वो मेरे ख़्वाबों में, जहन पे छा गया।।
आभा….🖋
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.
1 Comments on “कुछ अजीब से रिश्ते”
Vaah!! 💝😍😍