कुछ लफ्ज़ अनकहे से रह गए, कुछ दर्द आंसू बनकर बह गए,
कुछ पन्ने युहीं खाली छूट गए, कुछ सपने आँखों में ही कहीं टूट गए,
ना जाने वक़्त ने ली है ये कैसी करवट, ना जाने किस मोड़ पे ले आयी है ये ज़िन्दगी,
मंज़िले तो आज भी वही हैं,मगर रास्ते में ही रुक से गए हैं हम कही…
खालीपन की जंजीरो से कुछ ऐसे बंध से गए हैं,
ना दिल की शिकायतें सुनाई दे रही है, ना ही आगे बढ़ने की कोई आस दिखाई दे रही है,
अपने आप से सवाल करते करते अब थक से गए हैं,
ना रूह की सिसकियाँ महसूस हो रही है, ना ही उदासी के दामन को छोड़ पा रहे है…
तन्हाई में अक्सर सवालों का अँधेरा सा छा जाता है,
निगाहें खोजती है जवाब कई मगर,
रिश्तों की भूल भुलैया में भटक से गए हैं हम इस क़दर,
के ढूंढ़ने पे भी आगे कोई मुकाम नज़र नहीं आता है…
यूँ तो मन में है आज भी कई ख्वाइशें, यूँ तो आँखों में है आज भी कई सपने,
पर मन को अब समझा लेते हैँ, पलकों में सपनो को छुपा लेते हैँ,
फिर वही झूठी मुस्कुराहटों का नक़ाब पहने, दुनिया से निभा लेते हैँ,
अब खुदसे दोस्ती इतनी गहरी हो गयी है के, चुप रहके भी अपने आप को मन लेते हैँ…
लेकिन एक छोटा सा कोना दिल में आज भी एक उम्मीद लगाए बैठा है,
समझाया उसको कई बार… बहलाकर…. फुसलाकर ….
लेकिन मानने को त्यार नहीं,
कहता है हर रोज़ बात फिर वही,
के दुनिया की इस भीड़ में खुदको खो ना देना तुम कही,
रास्ते कठिन जरूर हैँ मगर, मंज़िलो को हासिल करने का हौसला भी कम नही…..
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 2.3 / 5. Vote count: 3
No votes so far! Be the first to rate this post.