चिड़ियों की चहचहाहट के मधुर संगीत से आंख खुली तो कॉटेज के बाहर का नज़ारा मंत्रमुगध करने वाला था उस नज़ारे की ओर आकर्षित हो में बाहर बालकनी में आ गया , सामने शांत मनमोहक जंगल था ।जंगल का ये मनोरम दृश्य कल शाम के अंधेरे में कहीं खो गया था ।रात को तो सन्नटा पसरा था कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था बस गाड़ी की हैडलाइट से जंगल की देढ़ी मेढ़ी सड़कों पर धीमी गति से रास्ता ढूंढ ते हुए हम कॉटेज तक पहुंचे थे ।इतने थक गए थे कि खाना का कर सो गए ।सोचा ना था कि सुबह ये जंगल इतना मधुरम और जीवांत होगा ।मैंने नजर घुमा कर अपने दोस्तों के कमरों की तरफ देखा तो वो बंद थे शायद वो अभी सो रहे थे।मैंने अपना फोन उठाया और चप्पल में ही निकाल पड़ा उन कुदरत के हसीन नजरों को अपने फोन के कैमरे में कैद करने के लिए ।चिड़ियों ने अपनी चीं चिं से पूरा जंगल संगीतमय कर दिया था ।पत्तियां तो इतनी ताज़गी लिए हुए थे मानो अभी नहा कर निकली हों ओस की बूंदे उन पर अभी भी झलक रही थी । मैं सुध बुध भूल कर उन नज़ारों को देखता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था ।रास्ते में हिरणों का झुंड मिला जो कनाखियों से मुझे देख रहे थे ।मानो पूछ रहे हों ” तुम कौन हो और इस जंगल में क्यों आए हो ?” जैसे ही उन की तस्वीर लेने बड़ा उन को शायद मेरी ये हरकत नागवार गुजरी और वो कुदाली मरते हुए वहां से भाग गए । रात को बारिश कि वजह से मिट्टी गीली थी और उस की सौंधी सौंधी खुशबू मेरे मन को सुगंधित कर रही थी । मेरे बाल बिखरे हुए थे और गीली मिट्टी में पैर धंसने कि वजह से मेरे पैर और चप्पल मिट्टी से सन चुके थे पर ये कोई शहर थोड़े ही है ,जंगल है यहां कौन है देखने वाला ।ये बेपरवाह आजादी मुझे बहुत भा रही थी और मेरा तन और मन फिर से ताज़ा महसूस कर रहे थे और जो सुख और शांति की अनूभूती मुझे उन जंगल की वादियों में हो रही थी वो शायद ही शहर के किसी भौतिक चीज़ों से मिले । मैं अपनी धुन में मग्न चलता जा रहा था और मुझे ये भी आभास नहीं रहा कि में रास्ता भटक चुका था और फोन के सिग्नल भी जा चुके थे ।तभी मुझे झाड़ियों के पीछे से कुछ आवाज अाई । मैं डर गया पर उत्सुकवश उस ओर बड़ा ।देखा तो हाथी का एक बच्चा मिट्टी और पानी के गड्ढे में गिर गया था और धंस गया था मैंने इधर उधर देखा पर और कोई उस के साथ नजर नहीं आया शायद वो भी मेरी तरह जंगल की सैर को अकेला निकला होगा चुपचाप ।वो बहुत कोशिश कर रहा था उस से बाहर आने की पर उसकी सारी कोशिशें बेकार हो रही थी । मुझे देख कर वो रुक गया और देखने लगा मानो मदद मांग रहा हो । मैं डरते डरते आगे बड़ा समझ नहीं पा रहा था कि कैसे इस कि मदद करूं ।तभी मुझे कुछ दूर एक पेड़ का मोटा तना दिखाई पड़ा जो शायद किसी आंधी तूफान में गिर गया होगा । मैं पूरी ताकत से उस को खींच कर गड्ढे के पास लाया और उस का एक हिस्सा गड्ढे में डाल दिया और दूसरा मैंने पकड़ लिया ।हाथी का बच्चा उस पर चढ कर आसानी से बाहर आ गया । बाहर आ कर वो मुझे प्यार भरी नजरों से देखता रहा फिर घने जंगल में कहीं चला गया । मैं भी रास्ता ढूंढ़ता हुआ वापस कॉटेज आ गया सभी दोस्त उठ चुके थे और मेरे अकेले जाने से परेशान थे । नहा धो कर मै फ्रेश हो गया और हम सब नाश्ता करने जा रहे थे तभी मुझे बाहर हाथी के चिंघाड़ने की आवाज सुनाई दी । मैं दौड़ कर बालकनी में गया । हाथी का बच्चा अपनी मां के साथ खड़ा था । मैं उस के पास गया और वो मुझे अपनी सूंड से प्यार करने लगा ।उसकी मां भी अपनी सूंड मुझ पर फेरने लगी उसकी आंखों में आसूं थे ।वो धन्यवाद करने अाई थी शायद ।मैंने उन्हें केले खिलाए फिर वो जंगल की ओर चले गए । एक बात तो मैंने उस दिन सीखी की जंगल के भी अपने उसूल होते हैं अगर आप जंगल से प्यार करोगे ती वो भी आपको दिल खोल कर अपनाएंगे और हमें कोई हक नहीं पहुंचता इन जानवरों ,पक्षियों ,और पेड़ पौधों के घर को काटने का ,उजाड़ने का । इन की शांत खूबसूरत, दुनिया में दखल देने का।
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2 Comments on “आरती मित्तल (UBI जंगल की एक सुबह प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र कहानी )”
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