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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित, “हिन्दी साहित्य का इतिहास,” पुस्तक की समीक्षा

हिंदी साहित्य के अबतक लिखे गए इतिहासों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ इस पुस्तक को सबसे प्रामाणिक तथा व्यवस्थित इतिहास माना गया है।

आचार्य जी ने इसे हिन्दी शब्दसागर भूमिका के रूप में लिखा था, जिसे बाद में स्वतंत्र पुस्तक के रूप में १९२९ में प्रकाशित किया गया। आचार्य शुक्ल ने गहन शोध और चिन्तन के बाद हिन्दी साहित्य के पूरे इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है।

इस पुस्तक में लगभग एक हजार कवियों के जीवन चरित्र का विवेचन किया गया है। कवियों की संख्या की अपेक्षा उनके साहित्यिक मूल्यांकन को महत्त्व प्रदान किया गया है। हिन्दी साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले लगभग सभी कवियों को इसमें शामिल किया गया है।

आचार्य जी ने कवियों एवं लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। प्रत्येक काल या शाखा की सामान्य प्रवृत्तियों का वर्णन करते हुए, उससे संबंधित प्रमुख कवियों का वर्णन किया है।

आचार्य जी कहते है के हिंदी साहित्य का भंडार पर्याप्त समृद्ध है। गद्य तथा पद्य की लगभग सभी विधाओं का प्रचुर मात्रा में साहित्य-सर्जन हुआ है। अनेक कालजयी कृतियाँ सामने आईं है। लेखकों और कवियों ने रचनात्मकता के उच्च मानक स्थापित किये गए हैं । जिन युगों में साहित्यिक सृजन का कालखंड हुआ था, उन्हें उन्हीं के नाम से जाना गया।

हिंदी साहित्य के इतिहास को संपूर्ण रूप में तथा गहराई से जानने-समझने के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल का यह इतिहास-ग्रंथ सर्वाधिक उपयुक्त है।

©️शीतल प्रधान देशपांडे

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