कल का राजा अंधा था
आज अंधे ही भरे हैं दरबारों में
जनता बहरी गूंगी जन्मी
आज के संसारों में
यहां धरती किसकी माता है
कौन है ऐसा पुत्र
जो नोच नोच उसके
अंगों को खाता है
हे ! माँ छोड़ अपनी ममता को
खुद ही अपनी चीर बचा ले
आज पुत्र बना है शकुनि
लाज अपनी तू बचा ले
ढंक गए तेरे सारे पर्वत
कचरे के इन पहाड़ों में
जीवन की सार नदी थी
आज बदल रही हैं नालों में
कब तक आस लगाओगी
रंगे इन सियारों से
किससे रक्षा की मांग करोगी जो
सहमत हैं दुर्योधन के विचारों से
स्वयं को जो बेच रहे हैं
वे क्या तुझे बचाएंगे
सुन माँ ! अब तू करवट ले
तुझे बचाने अब गोविंद ना आएंगे
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