पिता—— धैर्य, संयम और दृढ़ता की प्रतिमूर्ति !!!
जो रो कर अपने मनोभाव व्यक्त नहीं करते। कई बार बच्चे अपनी खुशी के लिए ऐसे-ऐसे कदम उठा लेते हैं कि उन्हें अपनी खुशी के सामने माता-पिता की परवरिश और इज्जत का भी ख्याल नहीं रहता । ऐसी परिस्थिति में भी वह पिता दृढ़ता का आवरण ओढ़े अंदर ही अंदर सुलगता है। वह पुरुष है,, वह रोता नहीं है !! पर हृदय तो है,,,,!! उसे तो चोट लगती है!! बेटियां होती है,,,, तो उन्हें हर तरह से काबिल बनाने का प्रयास करते हैं ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सके ,,,,,किसी के सामने झुकने की नौबत ना आए ।यह नहीं सोचते कि पराया धन कहायी जाने वाली एक दिन हमें तो छोड़ कर चली जाएगी तो इस पर पैसा व्यर्थ क्यों किया जाए ? ,,,नहीं,,,!!!
वह पिता ही है जो बेटे और बेटी में भेदभाव नहीं करते। बेशक माँ की भी भूमिका है परंतु पिता जैसा सहनशील, धैर्यवान और दृढ़ कोई नहीं !!!
अपनी जरूरतों को दफन कर बच्चों के शौक पूरे करते हैं पिता। पिता द्वारा शिक्षा की राह पर चलाए जाने की महत्ता से अवगत कराए जाने के कारण ही आज मेरी कुछ हस्ती है । अपने पैरों पर खड़े होने की बेहतरीन सीख मुझे उनसे मिली है ।शिक्षा धन के होने पर दूसरे धन स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं,, यह मैंने उन्हीं से सीखा है!! आज भी उनके यही शब्द है ,,,,,,बेटी!! कोई भी काम हो बेझिझक कहना !! जबकि रिटायर्ड हैं उम्र दराज हैं। मैं, उनके हौसले को,,उनके जज्बे को ,,उनके प्रेम को,,, सलाम करती हूँ।
मेरे पिता!! “मुझे आप पर गर्व है”।
( स्वरचित) अनामिका जोशी “आस्था”.
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.