और अब मंच पर बुलाया जाता है मिस्टर साहिल को जिन्होंने पूरे देश में दसवां और राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया “संघ लोक सेवा आयोग” की परीक्षा में और वह प्रशासनिक अधिकारी चुने गए हैं !
“मैं मां अपनी के हाथों ट्रॉफी लेना चाहता हूं ! “
“शांता जी कृपया मंच पर आइए !”
टीवी पर समाचार आ रहा था।
“शांता “
सुशील बाबू ने चश्मा साफ करके दोबारा लगाया। हाथों को सर के पीछे किया और कुर्सी पर आरामदायक पोजीशन में बैठ गए ।
अचानक से अतीत के पन्नों पर जमी मोटी धूल की परत उड़ने लगी।
“शांता तुम यहां”?
हां !मुझे यहां जबरदस्ती बंधक बनाकर रखा गया है! मैं मानव तस्करों की चंगुल में फंस गई हूं !मेरी मदद करो ! बुरी तरह से रोते हुए उसने कहा
तब शांता सिर्फ 15 बरस की थी और माता-पिता नहीं थे ।
सुशील ने कहा- हां! मैं लौट कर आऊंगा और तुम्हारी मदद करूंगा!” पर वह कभी लौट कर नहीं आया किंतु उसने एनजीओ को सूचना अवश्य दी थी!
सुशील बाबू आज तक आत्मग्लानि से निकल नहीं पाए !यह वह लड़की थी जिसको वह दिल ही दिल में पसंद करते थे किंतु कभी बताया नहीं ।
और कभी अपनाया भी नहीं।
यह कैसा प्यार था? क्यों नहीं अपनाया ?क्योंकि वह बदनाम हो गई थी ।
पुरुष स्वेच्छा से बदनाम गलियों में जाता हुआ भी बदनाम नहीं होता किंतु स्त्री को जबरदस्ती बदनाम बनाया जाता है। उसका कोई कसूर नहीं था ना उसका खून गंदा था ना उसके संस्कार गंदे थे।
शांता के बेटे का साक्षात्कार चल रहा था
“आप घबराएं नहीं अपनी मां के अतीत से? आप सबके सामने स्वीकार कर रहे हैं !
“मेरी मां ने मेरा त्याग नहीं किया तो मैं उसका त्याग कैसे कर सकता हूं जिसने इतने कष्ट उठाकर मुझे पाला?
माताएं तो सभी अच्छी होती हैं लेकिन मेरी माता सबसे अलग है।
इतना शक्तिशाली व्यक्तित्व किसी का नहीं हो सकता।
और तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई ।
सुशील बाबू मैं सोचा इसे कहते हैं संस्कार और इसे कहते हैं पवित्र रक्त ।
संस्कारों की #परीक्षा में शांता भी पास थी और साहिल भी , मगर हम………
तभी चीखने की आवाज से उनकी तंद्रा टूटी बाबूजी आपको और और मां को कितनी बार समझाया है कि यह भिखारियों के जैसा हूलिया बनाकर ड्राइंग में बैठे ना रहे । मेरे बॉस आने वाले हैं मेरी इज्जत का तो आपने कचरा करने की कसम खाई है आप लोगो ने
मेरी मजबूरी है कि अपलोगो को यह से हटा भी नहीं सकता।
उनका पुत्र” श्रवण” चिल्ला रहा था!
सुशील बाबू सरकारी कर्मचारी थे। बहुत ज्यादा तो नहीं कमाते थे किंतु इतना जरूर कमाते थे कि गुजारा हो जाए ।लेकिन उन्होंने अपने इकलौते पुत्र की परवरिश बिल्कुल राजकुमारों की तरह की कर्ज लेकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा आज उस पुत्र को उनसे शर्म आती है।
तभी श्रवण ने टीवी पर नजर डालते हुए कहा-
“गंदा खून”
और टीवी बन्द कर दिया।
हिना शाइस्ता ✍️
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
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