कीचड़ में रहकर भी जो कमल बनता है
काँटो में खिलकर भी जो गुलाब बनता है
वो जो धधकते कोयलों और अंगारों के बीच जन्म लेता है,
वो हीरा ,सदा के लिए फिर हीरा रहता है।
स्व रचित
स्वाति गर्ग
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कीचड़ में रहकर भी जो कमल बनता है
काँटो में खिलकर भी जो गुलाब बनता है
वो जो धधकते कोयलों और अंगारों के बीच जन्म लेता है,
वो हीरा ,सदा के लिए फिर हीरा रहता है।
स्व रचित
स्वाति गर्ग
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