खुली आंखों से देखे सपने मुझे सोने नहीं देते,
कुछ देर ही सो जाऊँ, ये ऐसा होने नहीं देते।
पथिक हूं कठिन राह का, ये रुकने नहीं देते,
मिल जाए मंज़िल मुझे, ये पीछे मुड़ने नहीं देते।
वो भी एक दौर था, जब टूटकर सोते थे,
तब पलकों की आगोश में सतरंगी सपने पलते थे।
जब नींद में सपनो का बेहिचक आना जाना था,
जिन्हें देखकर होंठों पर मीठी मुस्कान का डेरा था।
बेफिक्री के दिन थे और मस्ती के मेले थे,
कहानियों और किस्सों से सुंदर पल छिन थे।
हकीकत और सपनों का कोई मेल नहीं होता,
इच्छाओं का भी तो देखो, कभी अंत नहीं होता।
आंखों की सीमा है, पर सपनों की सरहद नहीं होती,
सपनों को मिल जाएं पंख, ऐसे सरहद पार नहीं होती।
लंबे इस सफर की जाने कब रात होगी,
और सतरंगी सपनों की फिर से उड़ान होगी।
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