” सावन की पुकार”
उमड़ती, घुमड़ती,
काली घटाएँ देखकर,
प्रेम प्रवाह।
मन का मयूरा,
सुन मेघ मल्हार,
करे प्रेम पुकार।
धरा हो गई सराबोर,
किया सुंदर फिर श्रृंगार,
पिया मिलन को आतुर।
प्रेम में भीगी,
उन्मुक्त, स्वच्छंद,
सात्विक प्रेम।
प्रिय से प्रेम संवाद,
हर ओर उन्माद,
सृजन, नवजीवन आधार।
फूलों की खुशबू में,
हवाओं की सरगम में,
अचानक ही नवसंचार।
फिर मौन, तृप्त,
मन का उद्वेग,
समर्पण की चाह।
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समर्पण की चाह 💕