वैसे तो मैं भी इक माँ हूँ,
धरती सी लेकिन कहाँ हूँ।
इससे बड़ा ना कोई दानी,
इसका नहीं है कोई सानी।
मीलों तक फैला इसका आँचल,
जिसमें पलते पशु, पक्षी, नर।
मैं तो केवल दो की माता,
यह है करोड़ों की अन्नदाता।
कितना कुछ है समाहित इसमें,
जिसे बाँटती यह बराबर सबमें।
इसके कोष-खजाने बाहर भीतर,
जिसपर हम सब बच्चे निर्भर ।
सब कुछ लुटाया अपने बच्चों पर इसने,
फिर क्यूँ सब्र ना इन बच्चों को जाने।
इसकी ही जड़ खोद रहे हैं,
पल पल इसको नोच रहे हैं ।
मैं तो कह सुन लेती बच्चों से,
यह केवल सहती बेबसी से।
इसके ह्रदय की उथल पुथल को
ये पगले भूकंप हैं कहते।
आँखों से जो इसके आँसू बहते,
उनको ये हैं बाढ़ समझते।
इतना सब कुछ दिया है इसने,
कृतघ्न, मगर इसका ध्यान ना रखते।
-सोनिया सेठी
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.
3 Comments on “सोनिया सेठी (UBI धरती माँ प्रतियोगिता | प्रशंसा पत्र (कविता ))”
Very nice 👍👌
Beautiful
Beautiful👌👌