खास लगाव है मेरा उस गली से,
ना ना, तुम नहीं समझ सकते।
वो जो सड़क का आखिरी मकान देख रहे हो,
घर था कभी मेरा।
यहीं तो उम्मीद की सीढ़ियां चढ़ी थी जवानी,
यहीं पर पला था कभी हसरतों का बचपन ।
इन्हीं गलियों में सजाए थे सपने कभी,
यहीं पर तो था ख्वाइशों का बाजार भी।
यहीं मेरी ज़िद भी परवान चढ़ी थी,
यहीं पर हौसले भी बुलंदियों पर थे कभी।
और वो जो चौराहा देख रहे हो अभी,
यहां लगती थी महफिल हमारी कभी।
शोख नादानियां और खूबसूरत शैतानियां,
गुड़िया की शादी में प्यारी अठखेलियाँ।
छूटा साथ उस गली से, सालों बीते
पर ना टूट सकेगा नाता इससे, चाहे युग बीतें।
आज भी कनखियों से देख लेती हूं,
जब गुज़रना होता है इधर से।
एक हल्की सी ख़लिश बनकर,
रहती है याद इसकी मेरे सीने में।
खास लगाव है मेरा उस गली से,
ना ना, तुम नहीं समझ सकते।
वो जो सड़क का आखिरी मकान देख रहे हो,
घर था कभी मेरा।
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