“अक्षय”
दुखी मन से अर्जुन जब बोले,
नहीं संभव है कृष्ण ये मुझसे।
सम्मुख मेरे बांधव, सुत, प्यारा,
मैं कर नहीं सकता उनपर प्रहारा।
अर्जुन से बोले भगवान्,
दूर तुम्हारा करूं अज्ञान।
सम्मुख तुम्हारे नहीं परिवार,
यह तो है नश्वर संसार।
सुनो पार्थ देकर कुछ ध्यान,
मैं बसता, सबमें बन प्राण।
मैं ही हूँ, तुझमें और उनमें,
मुझको हर कोई एक समान।
कर्म करना केवल तेरा काम,
फल इच्छा पर ना देना ध्यान।
सबकी नियति उनके साथ,
उसमें नहीं है तेरा हाथ।
जो जन्मा, उसका मरण भी निश्चित,
मत कर तू अपना मन विचलित।
वह सब मेरे ही को पाते,
निश्चित परम गति को जाते।
मरता है केवल शरीर,
आत्मा तोड़े जब जंजीर।
नश्वर है सारा संसार,
आत्मा अक्षय, अजर, अमर।
-सोनिया सेठी
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Very nice 👍👌👌👌👌
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