गुज़र रहा है जीवन जैसे,
किसी सुंदर सागर किनारे ।
बने पड़े हैं जहां अतीत के,
निशान अनगिनत कई सारे।
सामने भावी संभावनाओं की,
अथाह जल राशि पसरी।
जिसमें सदा उठा करतीं,
चुलबुली लहरें छोटी बड़ी।
हर लहर उत्साह से भरी,
साथ कितना कुछ लाती।
कुछ पुराना बहा ले कर,
स्मृति चिन्ह सजा जाती।
फिर सब स्थिर शाश्वत सा,
सुव्यवस्थित लगने लगता।
अगली लहर के आने पर,
फिर दृश्य बदलने लगता।
अनंत परिवर्तन श्रृंखला,
मैं अनदेखा कर जाता।
भाटा काल में परिश्रम से ,
बालू के महल बनाता।
समझ स्वयं को मालिक,
कर्ता धर्ता बन जाता।
बना किले महल बस्तियां,
मैं सुख अपार पा जाता।
ज्वार लहर की कल्पना से,
भय से सहम सा जाता।
मनाने सागर की लहरों को,
अनुष्ठान भी कई कराता।
कर लाख जतन चिंता से
मैं मुक्त कहां हो पाता ?
चिंता के चलते रक्तचाप,
मधुमेह रोगी बना जाता।
सोचता हूं अब लहरों के,
शोर में छिपा संदेश सुनूं!
लहरों संग सुखी रहने की ,
अनूठी सी सुंदर राह चुनूं!
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 1 / 5. Vote count: 1
No votes so far! Be the first to rate this post.