शीर्षक : ध्रुव तारा
जतन से सींचा सुंदर सपना
एकाएक ऐसे धराशाई हो जाय
ताश के पत्तों से बने महल सा
जब बीच मंझधार फंसे नैय्या
सहसा खो जाय खेवैय्या
जीवन ऐसा प्रतीत हो
जैसे सुंदर शीतल सांझ बेला
बन गई अनंत अमावस की रात
पसरी हो सर्वत्र कालिमा
सुझाई ना दे अपना ही हाथ
तब सब कुछ खोकर भी
थामे रखना हाथ आस का
खंगालना संभावनाओं का गगन
दृष्टिगोचर होगा झुरमुट
असंख्य नगण्य प्रतीत होती
झिलमिलाते सितारों जैसी
खिलखिलाने की प्रेरणाओं का
प्रसन्नता से खोजने पर वहीं पाओगे
एक मार्गदर्शक ध्रुव तारा
जो जगाए रखेगा आस्था
परिवर्तन की सकारात्मक सत्ता में
जब तक ओजस्वी रक्तिम आभा
पुनः सजा ना दे क्षितिज
स्वर्णिम उषा के स्वागत में
©श्याम सुन्दर शर्मा (स्वरचित कविता)
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