सावन की पुकार।
बिजली कड़के
आकाश गरजे
साथ,हवा बहके
घटायें तड़पे ।
रिमझिम सरगम
झंकृत तन मन
आंगन छमछम
मोहक नर्तन।
नदियां बेगवान
बाढोंकी उफान
आफतपे जान
न मिले त्राण।
खूदके साथ
खिडकी के पास
यादोंके आलाप
गूंजे आसपास !
अरसों के बाद
श्रावण के साथ
भुली हूयी बात
आये यूं याद !
कैसी तड़पन ?
पीड़ा बन बन
रुलाये मन
युँ ढूंढे हमदम !
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