अंधेरे मुझे देखने अब लगे है
अंधेरे मुझे घूरने अब लगे है
अंधेरे मुझे सोचने अब लगे है
अंधेरे मुझे अब डराने लगे है ,
अंधेरों को जिल्लत सहेजा है किसने
अंधेरों से लड़ने की हिम्मत नहीं है ।
नही दिख रही क्यूँ उजाले की रेखा
नही है उजाले में आशा की आशा
मगर सोचती हूँ कि कर लूं बगावत
दिलो से मिटे ये अंधेरे शायद ,
सुना है अंधेरों में इक रोशनी है
हौसले है बहुत ,
डर मुझे कुछ नही है