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ललिता वैतीश्वरण ( चक्का जाम प्रतियोगिता)

कहते हैं जब से कुछ बे परवाह ये गुल्फाम हुआ
तब से मेरे शहर की सड़कों पर चक्का जाम हुआ

लगता गया लम्बी कतारों का यूँ सिलसिला
अब सुबह से रात तक का इंतजार आम हुआ

वो दर्द से कराहता जाने को हुआ जब अस्पताल
न जा पाया और सत्य उसका राम नाम हुआ

उसकी नौकरी के साक्षातकार की आयी थी सूचना जब
उसके गरीब माँ बाप के दिलों को कुछ आराम हुआ

मगर न जा पाया वह अपनी मंजिल को करने हासिल
क्यूँकि इस रुके हुये य़ातायात से तमाम उसका काम हुआ

नौ महीने रख कर कोख में हुआ इंतजार उस के आने का
रास्ते में ही हुआ जन्म ऐसा मंज़र सरेआम हुआ

सरकती हुई य़ातायात का ऐसा हाल था
‘नगमा ‘
जब बढ़ती आबादी का ये हश्र औ अंजाम हुआ
तब से मेरे शहर में चक्का जाम हुआ !!

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