हरित लताओं का झुर्मुट था
थे नव कोपल चहुं ओर
क्यारी क्यारी से जीवन रस बरसे
ऐसी थी जंगल की एक भोर
भ्रमरों की गुंजन लगती यूँ
जैसे बांसुरी की कोई तान
चहचहाते खग घोलते वायु में
शीतल सुरीले मनमोहक गान
मैं मंत्रमुग्ध खड़ी रही देखती जैसे बाँधी प्रकृति ने डोर
ऐसे ही सम्मोहित करती थी वह जंगल की भोर
ओस की चमकीली बूंदों ने दिया सृजन संवार
हरी लहलहाती पत्तियों को पहनाया मोतियों का हार
प्रकृति का श्रिंगार देखकर नाच उठा मेरा मन मोर
नव जीवन से छलक रही थी जंगल की ये भोर
नन्हा सा एक पोखर बुझाता
प्यास- देकर शीतल जल
प्यार , भ्रातृत्व से ओतप्रोत निश्छल
शांती और स्थिरता का न था ओर छोर
ऐसी मनभावन थी ये जंगल की भोर
स्वच्छन्द , उन्मुक्त , प्रमुदित,
उल्लास में पूर्ण मगन
पंखों ने ली परवाज़छूने को विशाल गगन
प्रसन्नता और खुशहाली आयी मेरे ठौर
जब हुई मेरी इस जंगल में एक भोर !!!