बड़ी सुहानी सी थी वो जंगल की इक भोर,
नभ में छायी थी मदमस्त घटा घनघोर,
देख-२ हर्षित हुआ मेरे मन का
मोर,
डाल-२ पर उड़ते पंछी ख़ूब
मचाते शोर,
सावन भादों की छायी है काली
घटा मतवाली,
जंगल में मंगल मनाती रंग बिरंगी
हरियाली,
रंगे-बिरंगे पुष्पों की चहुँ ओर भरमार,
दादुर,मोर,पपीहा गाते मिलकर मेघ मल्हार,
वीर बहूटी की लाली करती वन गुलजा़र,
वनदेवी ने किया है धानी रंग श्रृंगार,
सुदूर जंगल के कोने पर पानी का इक पोखरा,
प्रेम की भाषा बोलते चकोरी और चकोरा,
आओ सब मिलजुल कर ख़ूब सारे पेड़ लगायें
जंगल की रक्षा कर धरती को हम स्वर्ग बनायें
जंगल में जब मंगल होगा धरती होगी यूँ ख़ुशहाल,
हम सब भी न होंगे गर्मी और पोल्यू़शन से बेहाल,
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6 Comments on “रीता बधवार(UBI जंगल की एक सुबह प्रतियोगिता | सम्मान पत्र )”
Wow it’s beautifully written and well expressed in simple words
बहुत सुंदर और लय बद्ध
अति सुन्दर वर्णन
Wowwww 👏 👏
बहुत सुंदर और लय बद्ध
Very nicely expressed. Amazing 👌